Sunday, 1 December 2019

          बालार्क मंदिर और उसका इतिहास




9वीं शताब्दी में बहराइच पर शासन करने वाले अर्कवंशी क्षत्रिय कुल के शासक महराजाधिराज त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी ने बहराइच में एक विशाल और भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। उनके द्वारा बनवाए गए इस सूर्य मंदिर को बालार्क मंदिर का नाम दिया गया था। महाराजाधिराज त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी ने बहराइच से अपनी विशाल सेना लेकर इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) के शासक को पराजित किया था। जिसके बाद महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी ने इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर अर्कवंश का एकक्षत्र शासन स्थापित किया।



जिसके फलस्वरूप महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी की नौ पीढ़ियों ने इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर शासन स्थापित किया। बहराइच में महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी द्वारा बनवाए गए भगवान अर्क (सूर्य) को समर्पित विशाल बालार्क मंदिर को १४ वीं सदी में पूरी तरह से तहस नहस कर डाला गया। हिंदुओ के धर्मस्थल के रूप में अपनी पहचान बना चुके इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास १० वीं सदी में ही किया गया था जब 1,50,000 लाख की इस्लामिक आक्रमणकारी जिहादी सेना ने बहराइच पर हमला किया था और तत्कालीन समय में बहराइच पर शासन कर रहे महाराजा सुहेलदेव भारशिव ने अन्य 17 राजाओं के साथ उस डेढ़ लाख की जिहादी इस्लामिक आक्रमणकारी लश्करों को गाजर मूली की तरह काटकर मौत के घाट उतार दिया था। इस 1,50,000 की जिहादी लश्करों (सेना) का नेतृत्व सैय्यद सलार मसूद गाजी और उसका मामा सैय्यद सलार महमूद गाजी दोनों कर रहे थे। लेकिन भारतीय योद्धाओं के समक्ष 1,50,000 लाख की इस्लामिक जिहादियों की टोली इस मंदिर को तोड़ने में असफल रही। लेकिन 14 वीं सदी में इस्लामिक आक्रमणकारी तुगलक ने हिंदुओं के धर्मस्थल बालार्क मंदिर को तोड़ डाला और वहां पर रहने वाले हिन्दुओं की हत्या कर उनकी आवाजों को बंद कर डाला। हिंदुओ के इस रक्तपात के बाद तुगलक ने बालार्क मंदिर की जगह उस आक्रमणकारी जिहादी सैय्यद सलार मसूद गाजी की दरगाह बना दी जहां पर भगवान सूर्य का मंदिर था। कल तक जहां हिंदुओ का धर्मस्थल बालार्क मंदिर था आज वहां उसी हमलावर सैय्यद सलार मसूद गाजी की दरगाह बनवा दी गई है। इसी बालार्क मंदिर के पास महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी द्वारा बनवाया गया सूर्य कुंड (अर्क कुंड) था। आज भी वहां पर यही कुंड विद्यमान है और मुस्लिम लोग इस दरगाह को घेरकर इस सूर्य कुंड को जमजम का पानी बोलकर पीते हैं। अतः सरकार से हमारी मांग है इस दरगाह को पूरी तरह से तोड़कर उसे उसके वास्तविक स्वरूप यानी के सूर्य मंदिर के रूप में स्थापित किया जाए।

Thursday, 31 October 2019

महारानी भीमा देवी अर्कवंशी



महाराजा इक्ष्वाकु के ही कुल में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने जन्म लिया था और उन्होंने अपना सम्पूर्ण राजपाट विश्वामित्र को दान में दे दिया था। ऐसी ही घटना इसी कुल में पुनः घटी जब अर्कवंश के महाराजा गोविंद चंद्र अर्कवंशी ने इंद्रप्रस्थ पर २१ वर्ष  ७ माह एवम् १२ दिवस तक शासन किया, परन्तु महाराजा गोविंद चंद्र अर्कवंशी की मृत्यु हो जाने के पश्चात उनकी पत्नी महारानी भीमा देवी ने अपना समस्त साम्राज्य अपने आध्यात्मिक गुरु हरगोविंद को दान में दे दिया और इस प्रकार से उन्होंने अपने कुल की दान धर्म की परंपरा का निर्वाहन किया।

== इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर अर्कवंशी महाराजाओं का शासन ==

महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी जोकि उत्तर प्रदेश के बहराइच में शासन करते थे। इसी अर्कवंश में जन्में महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी ने अपनी विशाल सेना लेकर समकालीन समय में इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर शासन कर रहे राजा विक्रमपाल को हराकर इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर अर्कवंश के शासन की ध्वजा फहराई। जिसके फलस्वरूप महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी की ९ पीढ़ियों ने इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर अपना शासन दृढ़ता के साथ स्थापित किया। जोकि इस प्रकार से हैं जिनका वर्णन हम आगे करने जा रहे हैं-

========शासक========

1. महाराजा त्रिलोकचंद्र अर्कवंशी
2. महाराजा विक्रम चंद्र अर्कवंशी
3. महाराजा मानक चंद्र अर्कवंशी
4.      महाराजा रामचंद्र अर्कवंशी
5.      महाराजा हरिचंद्र अर्कवंशी
 6. महाराजा कल्याणचंद्र अर्कवंशी
7.    महाराजा भीमचंद्र अर्कवंशी
8.    महाराजा लोकचंद्र अर्कवंशी
9.  महाराजा गोविंदचंद्र अर्कवंशी
10. महारानी भीमा देवी अर्कवंशी

======== अर्कवंशम् ========

Wednesday, 8 May 2019


अर्कवंशी क्षत्रिय द्वारा स्थापित खागा नगर का इतिहास-



अर्कवंश मे जन्में महाराजा दलपतसेन के पुत्र महाराजा खड्गसेन (खड्गसिंह) अर्कवंशी हुए, जिन्होंने खागा (खगपुरी) नामक नगर की स्थापना की। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के अन्तर्गत आने वाले इस नगर पर भी अर्कवंशी क्षत्रियों का इतना प्रभाव था कि इससे भयभीत हो चुके मुस्लिम आक्रमणकारी और शत्रु सेना सदैव अर्कवंशी शासकों से युद्ध करने मे संकोच करते थे क्योंकि इनकी युद्धनीति व रणकुशलता का सामना करने की किसी भी विरोधी सेना मे हिम्मत नही होती थी। जब इस नगर  पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हमला किया उस समय भी इस नगर पर अर्कवंश का गौरवशाली परचम लहरा रहा था।





लेकिन मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कुछ लालची और स्वार्थी लोगों को अपने साथ मिलाकर अर्कवंश के इस नगर पर हमला कर दिया जिसकी सूचना 
पाकर महल मे उपस्थित सभी अर्कवंशी क्षत्रियों ने रणनीति बनाई और शत्रु के वार का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए महाराजा खड्गसिंह अर्कवंशी के सेनापति समरजीत सिंह जी ने महल के द्वार अचानक से खुलवाकर शत्रु सेना की तरफ से आ रही सेना की विशालकाय टुकड़ी के मुखिया को हाथी पर बैठा देखकर उन्होंने अपने घोड़े को तेज गति से दौड़ाते हुए हाथी के सिर पर घोड़े के पाँव रखवाते हुए मुस्लिम सेना के एक सेनापति के सिर को धड़ से अलग कर दिया। जिसके बाद अर्कवंशी क्षत्रिय और उनके वह वीर सेनापति मुस्लिम आक्रमणकारियों की सेना को गाजर मूली की तरह काटते जा रहे थे लेकिन शत्रु की सेना विशाल होने के कारण व आंकलन ना होने के कारण मुस्लिम आक्रमणकारियों ने चारों तरफ से घेर कर धोखे के साथ महाराजा खड्गसेन अर्कवंशी के सेनापति और और अर्कवंशी योद्धाओं को अलग अलग घेर लिया बड़ी मात्रा मे जिसके बाद वीरता पूर्वक लड़ते हुए सेनापति समरजीत सिंह जी और अर्कवंशी योद्धओं ने अपने प्राण गवां दिये, जिसके बाद समस्त अर्कवंशी क्षत्रियों ने अपने प्राणों की चिंता किये बिना शत्रु से जा भिड़े, मुस्लिम आक्रमणकारियों की यह कुटिल नीति और छल उनके काम आई तथा प्राण गवां चुके अर्कवंशी क्षत्रियों के बचे रह गये केवल महल और उनके द्वारा बनवाये गये मंदिरों को तोड़ना शुरू कर दिया और जहां भी अर्कवंश से सम्बन्थित कोई भी प्रतीक देखते उसे तहस नहस किये बिना वह उसे छोड़ते नही थे कई सूर्य (अर्क) कुंडों व मंदिरों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अपवित्र किया।




आज भी यह रक्तरंजित युद्धगाथा खागा के प्रत्येक निवासी के जिव्हा पर रटी हुई है। अर्कवंश के शासको का एक समय फतेहपुर सहित इस क्षेत्र पर इतना दबदबा था कि अर्कवंशियों ने द्शाश्वमेघ यज्ञ तक करवा दिया था, और किसी भी तत्कालीन राजा में अर्कवंशी क्षत्रियों की प्रभुसत्ता को चुनौती देने की हिम्मत नही थी।




फतेहपुर से निकलने वाले समाचार पत्र “ दैनिक संवाद गौरव” के खागा विशेषांक मे प्रकाशित लेख में एक लेख विकास के आइने मे खागा का अतीत के लेखक रविकुमार तिवारी लिखते हैं- कि, खागा नगर के इतिहास की जितनी बात की जाए उतनी ही कम है इसका इतिहास अर्कवंशी क्षत्रियों से जुड़ा रहा है और अर्कवंशीयों ने ही इस नगर को बसाया है, इसका नामकरण अर्कवंश के महाराजा खड्गसेन (खड्गसिंह) अर्कवंशी ने करवाया था। लेख मे आगे लिखते है कि यहां पर अर्कवंशीयों ने ही दशाश्वमेघ जैसे विशाल यज्ञ का आयोजन भी करवाया था। खागा के आस पास कुकरा-कुकरी और कोट गांव आदि मे अभी भी अर्कवंशीयों के गौरवशाली इतिहास की निशानी देखी जा सकती है। इसके साथ ही साथ अर्कवंशी शासकों के फतेहपुर से जुड़े भी कई गौरवशाली इतिहास है जिनमे अर्कवंशी क्षत्रियों के अधीन 8 गढ़ थे जिन पर उनका आधिपत्य चलता था जिस कारण अर्कवंशीयों को अष्टगढ़ नरेश (अर्थात् आठ गढ़ों या किलों का राजा) कहा जाता था।

                        

संदर्भ सौजन्य से

1. श्री आर एन सिंह चौहान
2. सुशील सिंह अर्कवंशी 
3. रवि कुमार तिवारी